छठ पूजा, भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जिसे विशेष रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, और नेपाल के कुछ हिस्सों में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देवता और छठी मैया की उपासना का पर्व है, जिसमें चार दिनों तक व्रत, स्नान, और सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा होती है। इस महापर्व के दौरान भक्तजन अपनी सभी इच्छाओं की पूर्ति और सुख-समृद्धि की कामना के लिए कठोर व्रत करते हैं।
छठ पूजा का महत्व
छठ पूजा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व बेहद गहरा है। मान्यता है कि सूर्य देवता हमारी सभी समस्याओं का समाधान करते हैं और उनकी उपासना से स्वास्थ्य, संपत्ति, और समृद्धि की प्राप्ति होती है। सूर्य देवता न केवल ऊर्जा के स्रोत हैं, बल्कि जीवन के रक्षक भी माने जाते हैं। छठ पर्व की यह परंपरा हजारों साल पुरानी है, जो अब तक अनवरत जारी है।
छठ पूजा का इतिहास
छठ पूजा का उल्लेख प्राचीन वेदों में भी मिलता है। कुछ मान्यताओं के अनुसार, यह पूजा उस समय से प्रचलित है जब महाभारत में द्रौपदी और पांडवों ने अपने राज्य को पुनः प्राप्त करने के लिए सूर्य देवता की आराधना की थी। इसके अलावा, भगवान राम और माता सीता के भी सूर्य को अर्घ्य देने की कहानी इस पर्व से जुड़ी हुई है। छठ पूजा से जुड़ी विभिन्न कथाएं इसे और भी विशेष बनाती हैं।
छठ पूजा की विधि
छठ पूजा चार दिनों का पर्व है, जो कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से लेकर सप्तमी तक मनाया जाता है। इसके हर दिन का विशेष महत्व होता है:
- नहाय-खाय (पहला दिन): इस दिन व्रती शुद्धता का ध्यान रखते हुए गंगा स्नान करते हैं और केवल शुद्ध और सात्विक भोजन करते हैं। इस दिन का खाना शुद्धता के प्रतीक के रूप में होता है, जो पूजा के बाकी दिनों के लिए संकल्प का प्रारंभ होता है।
- खरना (दूसरा दिन): इस दिन व्रती पूरे दिन का उपवास रखते हैं और शाम को गुड़ और चावल की खीर, रोटी और केला का प्रसाद ग्रहण करते हैं। खरना का प्रसाद विशेष शुद्धता और पवित्रता के साथ बनाया जाता है।
- संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन): इस दिन व्रती नदी या तालाब किनारे जाकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इस अर्घ्य के समय का माहौल अत्यंत भव्य और आध्यात्मिक होता है, जिसमें सभी भक्तगण सूर्य देवता की स्तुति करते हैं।
- उषा अर्घ्य (चौथा दिन): अंतिम दिन प्रातःकाल व्रती उगते सूर्य को अर्घ्य देकर अपने व्रत का पारण करते हैं। इस अर्घ्य को देने के बाद प्रसाद का वितरण किया जाता है और फिर व्रती भोजन ग्रहण करते हैं।
छठ पूजा में प्रसाद का महत्व
छठ पूजा का प्रसाद बेहद खास होता है, जिसमें ठेकुआ, केला, नारियल, चावल और गन्ना का विशेष स्थान है। प्रसाद को शुद्धता और सावधानी से तैयार किया जाता है। ठेकुआ, जो गेहूं के आटे, गुड़ और घी से बनता है, इस पूजा का मुख्य प्रसाद है। प्रसाद सूर्य देवता को अर्पित किया जाता है और फिर भक्तों में वितरित किया जाता है।
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छठ पूजा के दौरान ध्यान रखने योग्य बातें
- साफ-सफाई: छठ पूजा में शुद्धता का अत्यंत महत्व है। व्रत करने वाले लोग नहाय-खाय से लेकर उषा अर्घ्य तक हर दिन पूरी तरह से सफाई का पालन करते हैं।
- शुद्ध भोजन: प्रसाद और भोजन को पूरी तरह से शुद्ध रखा जाता है। लहसुन, प्याज और मांसाहार का प्रयोग पूरी तरह वर्जित होता है।
- व्रत की कठोरता: इस व्रत के दौरान व्रती को चार दिनों तक कठिन उपवास रखना होता है, जिसमें कई बार जल का भी त्याग किया जाता है।
- व्रत के दौरान लहसुन, प्याज और मांसाहार का त्याग किया जाता है। पूजा के नियमों का पालन करते हुए शुद्धता और स्वच्छता का पूरा ध्यान रखा जाता है, जो आत्म-संयम का प्रतीक है।
छठ पूजा की आध्यात्मिकता
छठ पूजा में न केवल सूर्य देवता की उपासना होती है बल्कि यह आत्मा की शुद्धता और आत्म-अनुशासन का प्रतीक भी है। इस पर्व के दौरान भक्तजन अपनी इच्छाओं और मांगलिक कार्यों की पूर्ति के लिए कठोर व्रत का पालन करते हैं। छठ पर्व हमें संयम, सेवा और प्रकृति के प्रति आदर की सीख देता है।
छठ पूजा के आधुनिक रूप
हालांकि छठ पूजा का स्वरूप वर्षों से बदल रहा है, लेकिन इसकी आत्मा आज भी वैसी ही है। आजकल लोग बड़ी संख्या में एकत्र होकर सामूहिक रूप से पूजा करते हैं। कुछ लोग तो घर पर ही छठ पूजा का आयोजन करने लगे हैं, ताकि भीड़भाड़ से बचा जा सके और फिर भी पूरी श्रद्धा से पूजा कर सकें।
छठ पूजा का महत्त्व हमारे जीवन में बहुत अधिक है। यह पर्व न केवल सूर्य देवता की आराधना का अवसर है, बल्कि यह हमें हमारे प्राकृतिक संसाधनों के प्रति जागरूक करता है। इस पर्व को मनाने से भक्तजन को मानसिक शांति, सुख, और समृद्धि की प्राप्ति होती है। छठ पूजा आस्था का वह पर्व है, जो पूरे समाज को एक सूत्र में बाँधता है और सभी के बीच एकता का संदेश देता है।
आप सभी को छठ पूजा की ढेर सारी शुभकामनाएँ । सूर्य देव का आशीर्वाद सदा आप पर बना रहे।